मेरा पैसा गया कहा ? जरा ढूढिये तो सही!
हम अपने रोजमर्रा के कामो मे छोटी छोटी चीजो पर थोड़ा थोड़ा परन्तु नियमित रुप से खर्चा करते रहते है। इन खर्चो का हमारे व्यवसाय पर या हमारी निजी जिन्दगी पर क्या असर पड़ता है यह शायद इन खर्चो को करते समय हमे आभास कभी नही होता, परन्तु ये हमारी जेब मे कितना चोड़ा छेद करते है शायद इस बात का पता हमे महीने के अंत मे पता चल जाए।
अपने व्यवसाय मे हम 'डे बुक' तो रखते ही है, जरा इस मे पिछले महीने की खर्च कलमो के हिसाब पर नजर डाले तो रिसाव कहा से हो रहा है हमे पता चल जाएगा।
अपने निजी जीवन मे यदि हम एक छोटी सी 'पाकेट डायरी' अपनी जेब मे रख कर चले ओर हर छोटे से छोटे व बड़े से बड़े खर्च को को इस मे लिखते चले जाए तो हमे छेद के साइज का पता चल सकता है।
अब आया असली खेल। एक महीने तक इस 'पाकेट डायरी' के खेल को खेले। आप चाहे तो रोज शाम को अपनी Excel Sheet मे इस हिसाब किताब को डाले या Tally मे भी डाल सकते है। महीने के 30वे दिन इन खर्चो के आगे जरुरी या गैर जरुरी की निशानदेही करे। आप को जान कर हैरानी होगी की छेद की चौड़ाई आपकी उम्मीद से ज्यादा है।
अब चुनौती यह है की इसे कम या बिलकुल बंद कैसे किया जाए। तरीका बिलकुल आसान है अपने गैर जरुरी खर्चो को एक नजर फिर से देखो ओर अगले महीने जैसे ही वह खर्चा आए तो एक पल विचार करो की करे या नही। अगले महीने की चुनौती यही है कि आप छेद का 'साईज' कितना छोटा कर पाए।
4 टिप्पणियां:
यह तरीका तो समझ गये. काम भी आ सकता है लोगों को!!
-एक बात बताओ, यह जो छोटी डायरी खरीदी है, उसको किस मद में डालें: जरुरी या गैर जरुरी?? :)
-अरे, अन्यथा न लेना भाई. बस यूँ ही उत्सुकता जाग उठी!!
-वैसे एक्सेल और टैली पर तकनिकी लेखन की भी दरकार है.
एक अत्यन्त सरल किन्तु उतना ही प्रभावी उपाय।
ऐसे ही लिखते रहिये।
-- अनुनाद सिंह
सामान्य लोगों की सबसे बड़ी जरुरत बचत है…
अच्छा लि्खा है समय के लिहाज से!!
आ गया पटाखा हिन्दी का
अब देख धमाका हिन्दी का
दुनिया में कहीं भी रहनेवाला
खुद को भारतीय कहने वाला
ये हिन्दी है अपनी भाषा
जान है अपनी ना कोई तमाशा
जाओ जहाँ भी साथ ले जाओ
है यही गुजारिश है यही आशा ।
NishikantWorld
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